शिखा वार्ष्णेय ने पिछले साल जेनेरेशन गैप पर बड़ी सारगर्भित पोस्ट लिखी थी- क्या करें क्या न करें, ये कैसी मुश्किल हाय...इसमें बताया था कि मां-बाप कैसे अपनी पहाड़ जैसी उम्मीदों के तले अपने बच्चों के नैसर्गिक विकास को दबाए रखते हैं...खास तौर पर पिता बेटे से चाहता है कि जो वो जीवन में नहीं बन पाया, वो बेटा करके दिखाए...सुपरमैन जैसा हरफ़नमौला हो...उसी पोस्ट पर डॉ अमर कुमार ने ये टिप्पणी दी थी-
डा० अमर कुमार said...
मैं समझता हूँ कि यह एक यादगार पोस्ट के रूप में मन में बसी रहेगी ।
लड़का न हो गया.. पिता के अतृप्त आकाँक्षाओं के घुटन को हरने वाला राजकुमार !
पर.. माँ ? वह भी तो गाहे बगाहे गिनवाती रहती है, मेरा बेटा मेरे लिये यह करेगा, वह करेगा.. पहाड़ खोद देगा !
लड़का यदि घर में सबसे बड़ा हुआ, तो छूटते ही उसे छोटे भाई-बहनों का सँरक्षक मनोनीत कर दिया जाता है, वह अलग !
आपने मध्यमवर्गीय मानसिकता के केवल पक्ष को ही रखा है !
मैं शुक्रगुज़ार हूं शिखा का कि उन्होंने इस टिप्पणी समेत डॉक्टर साहब की कुछ टिप्पणियां इस ब्लॉग के लिए भेजी हैं....