डा० अमर कुमार
बुज़ुर्ग़... मैं ? पँगा हो जायेगा , मिश्रा जी ! मेल-मीनोपाज़ पर लेख लिखने को कह कर,मेरे ज़ोश-ए-निट्ठल्ले को पहले ही ललकार चुके हो,मुझको बुज़ुर्ग कह कर नौज़वानों का अपमान मत करो, भाई ! 4 April 2009 20:26
डा० अमर कुमार
यदि यह अंतिम टिप्पणी नहीं है
jaaaaaaaaaaaaaa
nuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu
meri jaan
main tujhpe qurbaan, तो ...खुश न हों मिश्रा जी,यह आप पर नहीं बल्कि कुश की टिप्पणी पर निकल पड़ी है..ऒऎ कुश, छ्ड्ड यार.. दिल वाले ही दुल्हनिया ले जाँदें हण ! 6 April 2009 18:55
डा० अमर कुमार
jaaaaaaaaaaaaaa
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meri jaan
main tujhpe qurbaan, तो ...खुश न हों मिश्रा जी,यह आप पर नहीं बल्कि कुश की टिप्पणी पर निकल पड़ी है..ऒऎ कुश, छ्ड्ड यार.. दिल वाले ही दुल्हनिया ले जाँदें हण ! 6 April 2009 18:55
डा० अमर कुमार
सहमत हूँ,अपने को विनम्र दिखलाने के प्रयास में अरविन्द जी ऎसा करते होंगे ।
आपका इस प्रकार का संकेत यहाँ रखना, मार्गदर्शन की एक अच्छी दिशा है..स्वागत है, ऎसी चर्चा का !पण गुरु.. ?अपुन के साथ यही तो गड़बड़ है, कि .. ससुरे किन्तु-परन्तु खर दूषण-की तरह साथ टँगें घूमते हैं ..तो गुरु
बेहतर करने का प्रयास किया जाये, कहीं पर कुछ अच्छा देख कर ईर्ष्याग्रस्त ( जल भुन ) हो जाया करने का क्या मायने समझा जाये ।, या ईर्ष्याग्रस्त होकर.... ?April 06, 2009 3:59 PM
आपका इस प्रकार का संकेत यहाँ रखना, मार्गदर्शन की एक अच्छी दिशा है..स्वागत है, ऎसी चर्चा का !पण गुरु.. ?अपुन के साथ यही तो गड़बड़ है, कि .. ससुरे किन्तु-परन्तु खर दूषण-की तरह साथ टँगें घूमते हैं ..तो गुरु
बेहतर करने का प्रयास किया जाये, कहीं पर कुछ अच्छा देख कर ईर्ष्याग्रस्त ( जल भुन ) हो जाया करने का क्या मायने समझा जाये ।, या ईर्ष्याग्रस्त होकर.... ?April 06, 2009 3:59 PM
डा. अमर कुमार
আমি জানতেছিলাম, এঈ বলবে আমার বোন !
मैं जानता था, कि बहन यही बोलेंगी ।
I knew that, it will end like it !डँडे का क्या है, रचना बहन ! डँडा भी तो मज़ाकै मा उठावा रहा !
याद है न, " भैया मेरे.. .. लाठी से बन्दर को भगाना " गाया करती थीं ?14 May 2009 19:28
डा. अमर कुमार
किसका.. टाइम ?अरे, अपने अपने मन की मर्ज़ी के मालिकान का ! वस्तुतः यह टाइमखोटी तब होता
और कीबोर्डधारी अगले को पाठक मनवाने में हलाकान होते रहते हैं , जब पाठ्क अपने को लेखक साबित करने में !हार कोई न मानता, बेचारे कम्प्यूटर का वक़्त जाया होता वह अलग से !नतीज़ा निकला कुछ नहीं, तो हुआ न टाइम खोटी ? April 26, 2009 3:57 PM
और कीबोर्डधारी अगले को पाठक मनवाने में हलाकान होते रहते हैं , जब पाठ्क अपने को लेखक साबित करने में !हार कोई न मानता, बेचारे कम्प्यूटर का वक़्त जाया होता वह अलग से !नतीज़ा निकला कुछ नहीं, तो हुआ न टाइम खोटी ? April 26, 2009 3:57 PM
डा० अमर कुमार
आज सुबह ब्लागवाणी ब्लाग पर आपकी टिप्पणी देख कर असहज हो गया, यह ख़्याल मेरे मन में आया था । इसे उछालने से पहले जब विचार किया तो पाया कि यह सँभव नहीं है । मुफ़्त के माल और सुविधा पर इतनी धौंस-पट्टी, तो सशुल्क सेवा लेने पर तो ब्लागवाणी टीम को अपने ताबेदार से अधिक कुछ और न समझेंगे । साबित करें कि मैं गलत सोच रहा हूँ ?
आपका दूसरा तर्क तो एकदम ही भटकाने वाला है, यदि धन खर्च करने से किसी साहित्य या भाषा का प्रसार सँभव होता, तो राजभाषा प्रकोष्ठ और अन्य हिन्दी प्रसार निदेशालय अब तक अपना लक्ष्य क्यों न पा सका ? अकेले ’ हिन्दी अपनाइये ’ के बैनर पर प्रतिवर्ष कितना व्यय किया जाता है, एनी गेस ? कोई अँदाज़ा पेश करिये, बाद में मैं इसका ख़ुलासा भी दूँगा !
सो. रचना मैडम जी, स्टार्ट गेसिंग नाऊ ..
हालाँकि मेरी कोई योग्यता तर्कशास्त्र या हिन्दी में नहीं है, फिर भी टिप्पणी विकल्प खुला देख टिपिया दिया । अनिधिकृत तो नहीं है, न ? September 29, 2009 7:54 PM
सो. रचना मैडम जी, स्टार्ट गेसिंग नाऊ ..
हालाँकि मेरी कोई योग्यता तर्कशास्त्र या हिन्दी में नहीं है, फिर भी टिप्पणी विकल्प खुला देख टिपिया दिया । अनिधिकृत तो नहीं है, न ? September 29, 2009 7:54 PM
6 comments:
डॉ अमर कुमार की टीपों को पढ़कर हम धन्य हुए सरकार! वे पहले ऐसे शख्स होंगे ,जिनकी टीपों की भी भारी डिमांड है !
साभार !
अकेली टिप्पणी से बात नहीं बनती। यदि पोस्ट का संदर्भ भी साथ हो तो टिप्पणी का महत्व समझ आता है।
post kaa link bhi neechae haen jis sae aap post par jaa saktae haen
kushdeep
in my mail sent all comments have the link under the date
kindly update the link under the date so as to direct the reader to the relevent post
regds
rachna
रंचना जी,
मैंने एक बार आपसे पहले भी कहा था कि आपका ब्लॉग जब भी खोलो सिस्टम को हैंग कर देता है...इसी वजह से इसे मुझे अपनी ब्लॉग लिस्ट से भी हटाना पड़ा है...चैक कीजिए, आपके यहां से लिंक लेने में दस दस मिनट लग जाते हैं...
जय हिंद...
बहुत बढ़ीया
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