आप सबसे पहले तो माफ़ी चाहता हूं कि अमर वचन का सिलसिला मेरी व्यस्तता के चलते बीच में टूट गया था...डॉक्टर अमर कुमार के हमारे बीच से गए करीब नौ महीने हो गए हैं...लेकिन इन नौ महीनों में मैंने रोज़ाना अपने दिवंगत पिता को याद किया तो डॉक्टर साहब रिफ्लेक्स एक्शन कीतरह खुद-ब-खुद हमेशा मेरे ज़ेहन में आते रहे...
टिप्पणियों के रूप में उनके अनमोल शब्दों को अपने ब्लाग की मैं सबसे बड़ी धरोहर मानता हूं...
मैं शुक्रगुज़ार हूं उन ब्लागर साथियों का जिन्होंने इस ब्लाग के लिए अपनी अपनी पोस्ट पर आई टिप्पणियां भेजीं...वो सब टिप्पणियां मैं प्रकाशित कर चुका हूं...बस डॉक्टर अनुराग आर्य और शिखा वार्ष्णेय की भेजी दो-दो टिप्णियां प्रकाशित होने से रह गई थी...लेकिन वो न जाने कैसे मेरे जीमेल अकाउंट से डिलीट हो गईं...इसके लिए मैं डॉक्टर अनुराग और शिखा से क्षमाप्रार्थी हूं..दोनों अगर उन्हें फिर भेज दें, तो मैं बहुत आभारी रहूंगा..
मैंने यही सोचा था कि जब मुझे और ब्लागर साथियों से मिली डॉक्टर अमर कुमार की सभी टिप्पणियां प्रकाशित हो जाएंगी, फिर अपनी पोस्ट पर आईं डॉक्टर साहब की टिप्पणियों को प्रकाशित करना शुरू करूंगा...वही सिलसिला आज से शुरू कर रहा हूं... डॉक्टर साहब की ये टिप्पणी मुझे17 सितंबर 2009 को अपनी लिखी पोस्ट पर मिली थी...पहले टिप्पणी, बाद में उस पोस्ट का लिंक है, जिससे टिप्पणी के संदर्भ को समझा जा सके...
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डा. अमर कुमारSeptember 18, 2009 1:23 AM
ब्लागर आक्सफ़ोर्ड के नाम से एक ब्लाग ही न चला दिया जाये ?
जिसका यह टैगलाइन भी हिट होगा, यह तो पक्का मान लीजिये
" इत्थों वड्डे फ़ँडे वाले वड्डे फ़ँडाधीश महाराज़ दा अशीश पाओ जी "
इक पोस्ट नाल टिप्पण दे तिन फ़सलाँ दी गरँटी
इन जैसे नाम सरीखे स्थायी स्तँभ भी रहे, तो बुरा न लगेगा ।
खबीस जिनको बनाया हमने मठाधीश
सुरागिया के खुर्दबीन से
गिरती टी.आर.पी. को सँभाले रखने के लिये बीच बीच में ऎसी शीर्षकों वाले पोस्ट ठेले जाते रहें तो क्या बात है
उस पँक्चर साइकिल की याद में
पोस्ट वही जो लफ़ड़े करवाये
जो मैंने लिखा नहीं, वह किसी ने पढ़ा नहीं
खिसके हुये मगज़कर का फ़ालतूफ़ँडिया ’फ़र्ज़ी’ से नोंकझोंक
TRY NOW..
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